वो चापलूसी कला के परमज्ञानी हैं। अगर चापलूसी PHD का विषय होता तो आज वो अपने नाम के आगे Doctor लिखते।  वो चापलूसी के इतने महारथी हैं, कि जिसकी उनकी चापलूसी प्राप्त करने वाला व्यक्ति, अपने आपको या तो Superman समझने लगता है, या भगवान। चापलूसी में उन्हें कई सिद्धीया प्राप्त हैं। वो घटिया Joke पर ठहाके लगा सकते हैं… साधारण सी बात में उसके समर्थन में, On demand आंसू गिरा सकते हैं… और समय आने पर गधे को भी बाप बना सकते हैं…अगर भविष्य में चापलूसी का Nobel Prize उन्हें मिले तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

दरअसल चापलूसों का और हमारे समाज का Love and Hate relationship है। साहित्य चापलूसों को अगर नफ़रत और घृणा से देखता है, तो धर्म फिल्म और राजनीति में चापलूसों को बहुत ही सम्मानजनक Position मिली है। भगवान उस भक्त से कुछ ज्यादा ही Impress रहते हैं, जो अपने माल को भी ‘सब कुछ मालिक का दिया हुआ है’ कहता है। ये चापलूसी का ही एक प्रकार है। भगवान ने अपने भक्त को कभी Correct करने की नहीं सोची, कि ‘नहीं बेटा ये तेरी मेहनत और बेईमानी की कमाई है।’  क्योंकि कहीं न कहीं Free का Credit अच्छा लगता ही है। राजनीति में चापलूसों की कितनी इज्ज़त है, इस पर तो कई किताबें लिखी जा चुकी हैं, इसलिए यहां उस पर जगह waste करना बेकार है।

गांधी जी ने वैसे तो चापलूसी के Support में Direct कुछ भी नहीं कहा, लेकिन उनकी एक बात से चापलूसों को काफी बल मिलता है…कि बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, और बुरा मत कहो”  चापलूस यही तर्क देते हैं, कि जब गांधी जी ने कहा है, बुरा मत कहो, तो हम क्यों कहें कि भाईसाब आप बहुत ही बुरे इंसान हैं… और बुरे इंसान को बुरा न कहना ही तो चापलूसी है।

कबीर दास जी भी बड़ी Impractical सी सलाह देकर चले गए… कि निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छबाए… अब भला कोई अपनी बुराई करने वाले पर, इतना Invest क्यों करना चाहेगा…कि उसे अपने ही आंगन में कुटिया दे के रख ले? और जब गांधी जी ने कहा है, कि बुरा मत सुनो, तो मैं अपनी बुराई क्यों सुनूं…?  

फिल्मों में चापलूसों का उतना ही महत्व है, जितना कहानी का। कुछ फिल्में तो बिना कहानी, चापलूसी के दम पर बन गईं…। चापलूसों ने Hero को चढ़ा दिया, कि भाई जब आप हैं, तो कहानी की क्या ज़रूरत, आप खड़े हो जाएंगे तो फिल्म hit हो जाएगी… भाई जोश में खड़े हो गए…Film बैठ गई…!!

चापलूस Director को भी चढ़ा के रखते हैं, कि Sir आपकी Film का एक Scene दूसरे Directors की एक फिल्म के बराबर है…नतीज़ा बेचारा Director एक Scene लेकर बैठा रहता है, और दूसरे पूरी फिल्म बना कर चल देते हैं…।

दुखद बात ये है, कि चापलूसी की कला को वो स्थान नहीं मिल पाया, जो मिलना चाहिए था। कुछ भी हो, लेकिन चापलूसी भी काफी प्राचीन और सफल कला है, जिसका संरक्षण अब ज़रूरी है।  कितने परिवार आज चापलूसी के दम पर ही चल रहे हैं। चापलूसों को भी उनको हक मिलना चाहिए, उन्हें सुविधाएं, भत्ते, सुरक्षा सभी मिलना चाहिए, जो आम लोगों को मिलता है। चापलूस दुनिया का सबसे परोपकारी व्यक्ति होता है, जो एक घटिया इंसान को भी कहता है, कि वो महान है। और जिसमें ये कहने का साहस हो, वो खुद कितना महान होगा…।

मैं चाहता हूं, कि आप लोग मेरी चापलूसी में, कुछ अच्छे अच्छे comments छोड़कर जाएं। धन्यवाद ।

© RD Tailang

Mumbai